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Marigold Farming

बागवानी: मौसमी आधार पर फूलों की खेती से जुड़ी अहम जानकारी

बागवानी: मौसमी आधार पर फूलों की खेती से जुड़ी अहम जानकारी

आजकल भाग-दौड़ भरी जिंदगी में लोग अपने बाग बगीचों में अलग अलग तरह के फूलों को उगाकर मानसिक सुकून हांसिल कर सकते हैं। आज हम आपको मौसमिक आधार पर कुछ विशेष फूलों की जानकारी प्रदान करेंगे। 

आप इन पौधों को गमलों, बरामदों, टोकरियों और खिड़कियों में बड़ी ही आसानी से उगा सकते हैं। सालाना या मौसमी फूल वाले पौधे उन्हें कहा जाता है, जो अपना जीवन चक्र एक वर्षा या एक मौसम में पूर्ण कर लेते हैं ।

फूलों के पौध तैयार करने की विधि

मौसमी फूलों के पौधे अलग अलग तरह से तैयार किये जाते हैं। दरअसल, कुछ फूलों के पौधों को पहले पौधशाला में तैयार करने के पश्चात क्यारियों में लगायें। 

इसके उपरांत विभिन्न प्रकार की प्रजातियों के बीज सीधे क्यारियों में लगा दिये जाते हैं। इनके बीज काफी छोटे होते हैं। इनकी सही तरीके से बेहतर देखभाल करके पौध को तैयार कर लिया जाता है।

मृदा चयन एवं तैयारी 

किसान भाई इस तरह की जमीन का चुनाव करें, जिसमें पर्याप्त मात्रा में जीवांश हों, सिंचाई और जल निकासी की अच्छी सुविधाएं उपलब्ध हों। फूलों की खेती के लिये रेतीली दोमट मृदा सबसे उपयुक्त मानी जाती है। 

जमीन को तकरीबन 30 सेमी की गहराई तक खोदें, गोबर की खाद, उर्वरक, आकार के अनुरूप मिश्रित करें। (1000 वर्ग मीटर क्षेत्र में 25-30 क्विंटल गोबर की खाद) वर्षा ऋतु में पौधशाला की देखभाल अन्य मौसमों की अपेक्षा में ज्यादा करें।

बीज की बुवाई और रोपाई

क्यारियों को आकार के मुताबिक एकसार करके 5 सेमी के फासले पर गहरी पंक्तियाँ निर्मित करके उनमें 1 सेमी की दूरी पर बीज रोपण करें। 

बीज बुवाई के दौरान इस बात का विशेष ख्याल रखें कि बीज एक सेमी से ज्यादा गहरा ना हो पाए। इसके बाद में इसको हल्की परत से ढकें। सुबह शाम हजारे से पानी दें। जब पौध तकरीबन 15 सेमी ऊँची हो जाए तब रोपाई करें।

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क्यारियों में रोपाई एक निश्चित दूरी पर ही करें। सबसे आगे बौने पौधे 30 सेमी तक ऊँचाई वाले 15-30 सेमी दूरी पर, मध्यम ऊँचाई 30 से 75 सेमी वाले पौधे, 35 सेमी से 45 सेमी तथा लंबे 75 सेमी से ज्यादा ऊँचाई रखने वाले पौधे 45 सेमी से 50 सेमी के फासले पर रोपाई करें।

फूलों की देखरेख से जुड़े बिंदु 

सिंचाई: वर्षा ऋतु में सिंचाई की अधिक जरूरत नहीं पड़ती है। अगर काफी वक्त तक वर्षा ना हो तो उस स्थिति में जरूरत के अनुरूप सिंचाई करें। शरद ऋतु में 7-10 दिन एवं ग्रीष्म ऋतु में 4-5 दिन के समयांतराल पर सिंचाई करें।

खरपतवार नियंत्रण: खरपतवार जमीन से नमी और पोषक तत्व ग्रहण करते रहते हैं, जिसके चलते पौधों के विकास तथा बढ़ोतरी दोनों पर प्रतिकूल असर पड़ता है। अर्थात उनकी रोकथाम के लिए खुरपी की मदद से घास-फूस निकालते रहें।

खाद एवं उर्वरक: पोषक तत्वों की उचित मात्रा, भूमि, जलवायु और पौधों की प्रजाति पर निर्भर करता है। आम तौर पर यूरिया- 100 किलोग्राम, सिंगल सुपरफॉस्फेट 200 किलो ग्राम एवं म्यूरेट ऑफ पोटाश 75 किलोग्राम का मिश्रण बनाकर 10 किलोग्राम प्रति 1000 वर्ग मीटर की दर से जमीन में मिला दें। उर्वरक देने के दौरान ख्याल रखें कि जमीन में पर्याप्त नमी हो।

तरल खाद: मौसमी फूलों की सही और बेहतर बढ़वार फूलों के बेहतरीन उत्पादन के लिये तरल खाद अत्यंत उपयोगी मानी गयी है। गोबर की खाद और पानी का मिश्रण उसमें थोड़ी मात्रा में नाइट्रोजन वाला उर्वरक मिलाकर देने से फायदा होता है ।

जलवायु एवं मौसमिक आधार पर फूलों का विभाजन 

वर्षा कालीन मौसमी फूल

इन पौधों के बीजों की अप्रैल-मई में पौधशाला में बोवाई करें और जून-जुलाई में इसकी पौध को क्यारियों या गमलों में लगायें। मुख्य रूप से डहेलिया, वॉलसम, जीनिया, वरबीना आदि के पौध रोपित करें ।

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शरद कालीन मौसमी फूल 

  1. इन पौधों के बीजों को अगस्त-सितम्बर माह में पौधशाला में बोयें एवं अक्टूबर के अंतिम सप्ताह में गमलों या क्यारियों के अंतर्गत रोपाई करें। इन पर फूल लगना करीब फरवरी-मार्च में शुरू होते हैं। प्रमुख रूप से स्वीट सुल्तान, वार्षिक गुलदाउदी, क्लार्किया, कारनेशन, लूपिन, स्टाक, पिटुनिया, फ्लॉक्स, वरवीना, पैंजी, एस्टर और कार्नफ्लावर आदि के पौधे लगायें ।

ग्रीष्म कालीन मौसमी फूल 

इन पौधों के बीज जनवरी में बोयें तथा फरवरी में लगायें इन पर अप्रैल से जून तक फूल रहते हैं। मुख्य रूप से जीनिया, कोचिया, ग्रोमफ्रीना, एस्टर, गैलार्डिया, वार्षिक गुलदाउदी लगायें।

बीज इकठ्ठा करना 

बीज के लिए फल चुनते समय फूल का आकार, फूल का रंग, फूल की सेहत अच्छी ही चुननी चाहिये। जब फूल पक कर मुरझा जायें तब उसे सावधानी से काट कर धूप में सुखा लें फिर सावधानी से मलकर उनके बीज निकाल लें और फिर उन्हें शीशे के बर्तन या पॉलीथिन की थैली में बंद कर लें।

मौसमी फूलों के प्रमुख पौधे इस प्रकार हैं 

बाड़ के लिये पौधे: गुलदाउदी, गेंदा।

गमले में लगाने हेतु: गेंदा, कार्नेशन, वरवीना, जीनिया, पैंजी आदि ।

पट्टी, सड़क या रास्ते पर लगाने हेतु: पिटुनिया, डहेलिया, केंडी टफ्ट आदि ।

सुगंध के लिये पौधे: स्वीट पी, स्वीट सुल्तान, पिटुनिया, स्टॉक, वरबीना, बॉल फ्लॉक्स ।

क्यारियों में लगाने हेतु: एस्टर, वरवीना, फ्लॉस्क, सालविया, पैंजी, स्वीट विलयम, जीनिया।

शैल उद्यानों में लगाने हेतु: अजरेटम, लाइनेरिया, वरबीना, डाइमार्फोतिका, स्वीट एलाइसम आदि ।

लटकाने वाली टोकरियों में लगाने हेतु: स्वीट, लाइसम, वरवीना, पिटुनिया, नस्टरशियम, पोर्तुलाका, टोरोन्सिया। 

गेंदा है औषधीय गुणों से भरपूर जाने सम्पूर्ण जानकारी

गेंदा है औषधीय गुणों से भरपूर जाने सम्पूर्ण जानकारी

गेंदे का फूल सुगंध के साथ साथ बहुत सी बीमारियों में भी फायदेमंद होता है। आज के इस आर्टिकल में हम बात करेंगे गेंदे के औषिधीय गुणों के बारे में। 

गेंदा बहुत सी बीमारियों में सहायक होता है इसीलिए इसका उपयोग आयुर्वेद में भी किया जाता है। गेंदे के फूल में मिनरल्स, विटामिन बी, विटामिन ए और एंटीऑक्सीडेंट भी पाए जाते है जो बहुत सी बीमारियों से लड़ने में सहायक होते है। 

भारत जैसे राज्य में गेंदे के फूल का बहुत बड़ा महत्व है इसका उपयोग धार्मिक कार्यों के अलावा शादी वगेरा में भी बड़े स्तर पर किये जाते है। आपको जानकार हैरानी होगी गेंदे का फूल बहुत से बीमारियों से लड़ने में भी सहायक है।  

इसके बहुत से औषधीय गुण है जो शरीर के अंदर बहुत सी बीमारियों से लड़ने में सहायक होता है। इसके अलावा गेंदे के फूल का उपयोग मुर्गियों के भोजन के लिए भी किया जाता है, इससे मुर्गी के अंडे की गुणवत्ता में वृद्धि होती है और अंडा आकर्षक भी बनता है। 

गेंदा के फूल से मिलने वाले औषिधीय  गुण 

गेंदा के फूल से मिलने वाले औषधीय गुण बहुत है, जो शरीर के अंदर बहुत सी बीमारियों से लड़ने में सहायक होते है आइये बात करते है गेंदे के फूल से मिलने वाले औषधीय गुणों के बारे में। 

  1. गेंदे की हरी पत्तियों को तोड़कर यदि उसका रस कान में डाला जाए तो कान के दर्द में राहत मिलती है। गेंदे का रस कान में होने वाले दर्द के लिए काफी उपयोगी है। 
  2. गेंदे की पत्तियां रोगाणु रोधी का भी काम करती है। यदि गेंदे की पत्तियों का रस निचोड़ कर खुजली, दिनाय या फोड़ा पर लगाए जाए तो इससे ठीक हो जाता है। 
  3. अपरस की बीमारी( यानी शरीर पर लाल चिकत्ते पड जाना ) में यह रस काफी लाभदायक होता है। 
  4. अंदरूनी चोट या मोच आने पर भी गेंदे की पत्तियों का रस निकाल कर मालिस करने पर यह काफी असरदार होता है। 
  5. यदि गेंदे की पत्तियों का रस निकालकर कटी हुए जगहों या फिर जिस जगह से रक्त बह रहा हो वहा पर लगाने से रक्त को रोका जा सकता है। 
  6. गेंदे के फूल से आरक को निकाल कर पीने से खून साफ़ होता है। 
  7. खूनी बबासीर के लिए इसे काफी उपयोगी माना जाता है। ताजे फूलों का रस निकाल कर पीने से खूनी बबासीर में आराम मिलता है। 

गेंदा की खेती के लिए कैसी भूमि होनी चाहिए ?

गेंदा की खेती के लिए उचित जल निकास वाली भूमि बेहतर मानी जाती है। गेंदे की खेती के लिए मटियार, दोमट और बलुआर मिट्टी को उचित माना जाता है। 

गेंदा की खेती के लिए भूमि की तैयारी 

भूमि की कम से कम 3 से 4 बार जुताई करें, जुताई करने के बाद खेत में पाटा लगाए और भूमि को समतल बना ले। मिट्टी भुरभुरी होने पर खेत में क्यारियां बना दे। 

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गेंदा की व्यावसायिक किस्में कौन सी है ?

  1. अफ्रीकन गेंदा: गेंदे की इस किस्म के पौधे शाखाओ से 1 मीटर तक ऊँचे रहते है। इस किस्म के फूल गोलाकार, पीले और नारंगी रंग में बहुगुणी पंखुड़ियों वाले होते है। इस किस्म में कुछ पौधों की ऊंचाई 20 सेंटीमीटर भी होती है। इसके अलावा इस किस्म के बड़े फूलों का व्यास 7 से 8 सेंटीमीटर होता है। व्यवसाय के दृष्टिकोण से उगाये जाने वाले गेंदे के फूल प्रभेद-पूसा ऑरेंज, अफ़्रीकी येलो और पूसा वसंतु है। 
  2. फ्रांसीसी गेंदा: इस किस्म के पौधों की ऊंचाई 25 से 30 सेंटीमीटर तक होती है। गेंदे की इस किस्म में बहुत फूल आते है, पूरा पौधा फूलों से ढका हुआ होता है। इस प्रजाति की कुछ उन्नत किस्में है: कपिड येलो, बटन स्कोच, बोलेरो और  रेड ब्रोकेट। 

खाद और उर्वरक का उपयोग 

गेंदे के खेत में जुताई से पहले 200 क्विंटल खाद डाले। खाद डालने के बाद खेत की अच्छे से जुताई करें ताकि खाद अच्छे से मिट्टी में मिल जाए। 

उसके बाद खेत में  120 किलो नत्रजन, 80 किलो फॉस्फोरस, 70 किलो पोटाश खेत में प्रति एकड़ के हिसाब से डालें। इसके बाद आखिरी बार जुताई करते वक्त फॉस्फोरस और पोटाश की मात्रा को खेत में डाल दे।  इसके बाद नत्रजन की आधी मात्रा को पौधों की रुपाई के बाद 30 या 40 दिन के अंदर उपयोग करें। 

गेंदा के फूल की खेती की सम्पूर्ण जानकारी

गेंदा के फूल की खेती की सम्पूर्ण जानकारी

खेती-किसानी का जब जिक्र आता है। हमें गांव में बसने वाला उस असली किसान का चेहरा सामने नजर आता है। जो ओस-पाला, सर्दी, प्रचण्ड धूप, अखण्ड बरसात की परवाह किये बिना 24 घंटे सातों दिन अपने खून-पसीने से अपने खेतों को सींच कर अपनी फसल तैयार करता है। 

उसकी इस त्याग तपस्या का क्या फल मिलता है? शायद ही कोई जानता होगा। किसान का दर्द केवल किसान ही जान सकता है। इस हाड़ तोड़ मेहनत के बदले में किसान को केवल दो जून की रोटी ही नसीब हो पाती है। 

इसके अलावा किसान को किसी तरह के काम-काज की जरूरत होती है तो उसे कर्ज ही लेना पड़ता है। एक बार कर्ज  के जाल में फंसने वाला किसान पीढ़ियों तक इससे बाहर नहीं निकल पाता है।

किसान की भूमिका

  • देश की अर्थव्यवस्था में किसान बहुत बड़ी भूमिका होती है। वह भी भारत जैसे कृषि प्रधान देश में तो किसान अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। रीढ़ पूरे शरीर का भार उठाती है, उसे मजबूत करना चाहिये। क्या भारत में इस रीढ़ (किसान की) की पर्याप्त देखभाल हो रही है, शायद नहीं।
  • इसका ताजा उदाहरण हम कोविड-19 यानी कोरोना महामारी का ले सकते हैं। इस महामारी में जब सारे लोग अपनी जान बचाकर अपने-अपने घरों में छिप गये लेकिन किसान के जीवन में और कड़े दिन आ गये।
  • कोरोना की परवाह किये बिना अपने खेतों में दोगुनी मेहनत करनी पड़ी ताकि देश के लोगों की जान बचाई जा सके। लेकिन इस दुखियारे किसान की किसी ने भी सुधि नहीं ली।
  • कोरोना योद्धाओं में डॉक्टरों, नर्स, पैरामेडिकल स्टाफ, पुलिस कर्मी, सुरक्षा बल के कर्मचारियों, सफाई कर्मियों, मीडिया कर्मियों एवं समाजसेवियों का नाम लिया जाता है और उन्हें कोराना योद्धा की उपाधि देकर उनका गुणगान किया जाता है लेकिन जब सारे कल-कारखाने बंद हो गये थे तब जिस किसान ने देश की अर्थव्यवस्था को संभाले रखा, उस किसान को किसी ने एक बार भी कोरोना योद्धा, अन्नदाता या ग्राम देवता तक कह कर नहीं पुकारा।
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किसानों की दशा खुद किसान को ही सुधारनी होगी। इसके लिए अपने पैरों को और मजबूत करना होगा। इस काम के लिए किसान को देश की अर्थव्यवस्था के साथ ही अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करना होगा। 

इसके लिए किसान को परम्परागत खेती की जगह आधुनिक व उन्नत खेती तथा आर्थिक स्थिति मजबूत करने में सहायक लीक से हटकर वे फसले लेनी होंगी जो कम समय और कम लागत में अधिक से अधिक आमदनी दे सकतीं हों। 

इस तरह की फसलों में गेंदा के फूल की खेती भी उनमें से एक है। तो आइये जानते हैं गेंदा के फूल की खेती की सम्पूर्ण जानकारी।

गेंदा का फूल का महत्व

फूल की खेती

भारतीय समाज में गेंदा के फूल का बहुत अधिक महत्व है। भारतीय समाज में होने वाले प्रत्येक सामाजिक व धार्मिक कार्यों में गेंदे के फूल की बहुत अधिक मांग होती है। 

प्रत्येक साल में दो बार नवरात्र, दीवाली, दशहरा, बसंत पंचमी, होली, गणेश चतुर्थी, शिवरात्रि सहित अनेक छोटे-मोटे धार्मिक आयोजन होते ही रहते हैं। 

इसके अलावा प्रत्येक भारतीय घर में और व्यावासायिक संस्थानों में प्रतिदिन पूजा-अर्चना होती है जिसमें गेंदा के ताजे फूलों का इस्तेमाल किया जाता है। 

इसके अलावा सामाजिक कार्यों जन्म दिन की पार्टी हो, शादी, व्याह हो, मुंडन व यज्ञोपवीत कार्यक्रम हो, शादी की सालगिरह हो, व्यवसायिक संस्थानों के स्थापना दिवस हो, नये संस्थान का उदघाटन हो, कोई प्रतियोगिता हो । 

इन सभी कार्यक्रमों मुख्य द्वार, मंडप, स्टेज आदि की साज-सजावट के साथ माल्यार्पण, पुष्पहार व पुष्पार्पण आदि में गेंदे के फूल का इस्तेमाल बहुतायत में किया जाता है।

किस्में और पैदावार के स्थान

गेंदे के फूल के आकार और रंग के आधार पर मुख्य दो किस्में होतीं हैं। एक अफ्रीकी गेंदा होता है और दूसरा फ्रेंच गेंदा होता है। फ्रेंच गेंदे की किस्म का पौधा अफ्रीकी गेंदे के आकार से छोटा होता है। इसके अलावा भारत में पैदा होने वाली गेंदे की किस्में इस प्रकार हैं:- 

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  1. पूसा बसंती गेंदा
  2. फ्रेंच मैरीगोल्ड
  3. अफ्रीकन मैरीगोल्ड
  4. पूसा नारंगी गेंदा
  5. अलास्का
  6. एप्रिकॉट
  7. बरपीस मिराक्ल
  8. बरपीस हनाइट
  9. क्रेकर जैक
  10. क्राउन आफ गोल्ड
  11. कूपिड़
  12. डबलून
  13. गोल्डन ऐज
  14. गोल्डन क्लाइमेक्स
  15. गोल्डन जुबली
  16. गोल्डन मेमोयमम
  17. गोल्डन येलो
  18. ओरेंज जुबली
  19. येलो क्लाइमेक्स
  20. रिवर साइड
इन प्रमुख किस्मों के अलावा अन्य कई किस्में भी हैं, जिनकी खेती जलवायु और मिट्टी के अनुसार अलग-अलग स्थानों पर की जाती है। 

अफ्रीकन गेंदे की हाइब्रिड किस्में: शोबोट, इन्का येलो, इन्का गोल्ड, इन्का ओरेंज, अपोलो, फर्स्ट लेडी, गोल्ड लेडी, ग्रे लेडी, आदि फ्रेन्च गेंदे की हाइब्रिड किस्में: (डबल) बोलेरो, जिप्सी डवार्फ डबल, लेमन ड्राप, बरसीप गोल्ड, बोनिटा, बरसीप रेड एण्ड गोल्ड, हारमनी, रेड वोकेड आदि। (सिंगल) टेट्रा रफल्ड रेड, सन्नी,नॉटी मेरियटा आदि।

गेंदे की खेती के लिए मिट्टी व जलवायु

फूल की खेती

वैसे तो गेंदा विभिन्न प्रकार की मिट्टी में पैदा किया जा सकता है लेकिन इसके लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है।जल जमाव वाली मिट्टी इसके लिए अच्छी नहीं होती है। 

तेजाबी व खारी मिट्टी भी इसके लिये अनुकूल नहीं होती है। गेंदे की खेती के लिए शीतोष्ण और सम शीतोष्ण जलवायु सबसे अच्छी होती है। इसके अलावा भारत की प्रत्येक जलवायु में गेंदे की खेती होती है। पाला गेंदे का दुश्मन है। इससे बचाना जरूरी होता है।

खेती की अवधि

गेंदे की खेती बहुत कम समय में होती है। तीन से चार माह में इसकी पूरी खेती होती है। साल भर में गेंदे की खेती तीन बार की जा सकती है। 

गेंदे की खेती के लिए 15 से 30 डिग्री तापमान सबसे उपयुक्त होता है। 35 डिग्री से अधिक तापमान गेंदे की खेती के लिए नुकसानदायक होता है।

खेत की तैयारी

मिट्टी की जुताई अच्छी तरीके से की जानी चाहिये। जब तक खेत की मिट्टी भुरभुरी न हो जाये तब तक उसकी जुताई की जानी चाहिये। आखिरी जुताई के समय रूड़ी की खास व गोबर की खाद को मिलाया जाना चाहिये।

बिजाई का समय

गेंदे की फसल साल में तीन बार ली जाती है। प्रत्येक फसल के लिए बीज बुवाई और पौधरोपाई का अलग-अलग समय निर्धारित होता है।  साल में गर्मी की फसल के लिए जनवरी-फरवरी के बीच बीज बुवाई का समय होता है। 

इसके जब पौध तैयार हो जाती है जिसे फरवरी-मार्च में पौधे की रोपाई की जाती है। इसके बाद वर्षा ऋतु की फसल के लिए मध्य जून में बीजों की बुवाई की जाती है। इससे तैयार पौधों की रोपाई जुलाई मध्य में की जाती है। 

इस तरह से सर्दी की फसल के लिए सितम्बर में बीज की बुवाई होती है और मध्य अक्टूबर में पौधों की रोपाई होती है।

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पौधों की रोपाई की मुख्य बातें

अच्छी तरह से तैयार क्यारियों के अच्छे पौधों को छांट कर पोपाई करनी चाहिये। पौधों की रोपाई शाम के समय ही की जानी चाहिये। पौधों की जड़ों को अच्छी तरह से मिट्टी से ढक दिया जाना चाहिये। साथ ही पानी का छिड़काव करना चाहिये।   फूल की खेती

पौधों से पौधों की दूरी

अफ्रीकन नस्ल के पौधे काफी घने और बड़े होते हैं। इसलिये इनकी पौधे से पौधे की दूरी 15 गुणा 10 इंच की रखी जानी चाहिये।फ्रेंच पौधों की दूरी कम भी रखी जा सकती है। इस किस्म के पौधों की पौधों से दूरी 8 गुणा 8 या 8 गुणा 6 इंच रखी जानी चाहिये।

सिंचाई

गेंदे की फसल 55 से 60 दिन में तैयार हो जाती है और यह फसल एक महीने तक लगातार देती रहती है। कुल मिलाकर तीन महीने में यह फसल पूर्ण हो जाती है। इसके लिए गर्मियों में सप्ताह में दो बार और सर्दियों में 10 दिन में सिंचाई की जानी चाहिये।

पौधों की कटाई छंटाई

गेंदे के पौधों की बढ़वार रोकने के लिए जब पौधा बाढ़ पा आये तो उसकी पिचिंग यानी ऊपर से छंटाई कर देनी चाहिये। ताकि पौधा घना तैयार हो उससे फूल अधिक आयेंगे।

उर्वरक प्रबंधन व खरपतवार नियंत्रण

गेंदे की खेती के लिए एक हेक्टेयर में 15 से 20 टन गोबर की खाद, 600 किलोग्राम यूरिया, 1000 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट और 200 किलोग्राम पोटाश की डाली जानी चाहिये। 

खाद का प्रयोग खेत को तैयार करते समय किया जाना चाहिये। उस समय गोबर की खाद, फास्फेट और पोटाश तो पूरे का पूरा मिलाना चाहिये लेकिन यूरिया का एक तिहाई हिस्सा मिलाना चाहिये। 

आखिरी जुताई से पहले ही यह पूरी खाद मिट्टी में मिलाना चाहिये। बची हुई यूरिया का पानी देने के समय इस्तेमाल किया जाना चाहिये। 

खरपतवार नियंत्रण के लिए मजदूरों से कम से कम दो बार निराई करानी चाहिये। उसके अलावा एनिबेन, प्रोपेक्लोर और डिफेनमिड का इस्तेमाल किया जाना लाभप्रद होता है।

बीमारियां व कीट नियंत्रण

गेंदे के पौधे को रेड स्पाइटर माइट नाम का कीड़ा बहुत अधिक नुकसान पहुंचाता है। इसके नियंत्रण के लिए मैलाथियान या मेटासिस्टॉक्स का पानी में घोल कर छिड़काव करें। 

चेपा कीड़ा भी खुद तो नुकसान पहुंचाता ही है और साथ में रोग भी फैलाता है। इसके नियंत्रण के लिए डाईमैथेएट (रोगोर) या मैटासिस्टॉक्स का छिड़काव करें। एक बार में कीट नियंत्रण में न आयें तो दस दिन बाद दोबारा छिड़काव करायें। 

आर्द्र गलन नामक गेंदे के पौधों में बीमारी लगती है। इसकी रोकथाम के लिए कैप्टान या बाविस्टिन के घोल का छिड़काव करें। धब्बा व झुलसा रोग से बढ़वार रुक जाती है। 

इसके नियंत्रण के लिए डायथेन एम के घोल का छिड़काव प्रत्येक पखवाड़े में करें। पाउडरी मिल्डयू नामक बीमारी से पौध मरने लगता है। इसकी रोकथाम घुलने वाली सल्फैक्स का या कैराथेन 40 ईसी का छिड़काव करायें।

फूलों की तुड़ाई व पैकिंग आदि

फूलों की तुड़ाई ठण्डे मौसम में यानी सुबह अथवा शाम को सिंचाई के बाद तोड़ें। इनकी पैकिंग करके मार्केट में भेजें । अफ्रीकन गेंदे से प्रति हेक्टेयर 20-22 टन तथा फ्रेंच पौधे से 10 से 12 टन फूल मिलता है।

भारत में ऐसे करें डेज़ी फूल की खेती

भारत में ऐसे करें डेज़ी फूल की खेती

डेजी एक सजावटी पौधा है जिसे दुनिया भर में उगाया जाता है। इसे अफ्रीकी डेज़ी, ट्रांसवाल डेज़ी और जरबेरा के फूल के नाम से भी जाना जाता है। फिलहाल मुख्य तौर पर इसका उत्पादन नीदरलैण्ड, इटली, पोलैण्ड, इजरायल और कोलम्बिया आदि देशों में किया जाता है। पिछले कुछ वर्षों से देखा गया है कि भारत में भी इस फूल की मांग तेजी से बढ़ी है। जिसके कारण कई राज्यों के किसानों ने डेज़ी फूल की खेती करना शुरू कर दी है। फिलहाल इस फूल की खेती मुख्य तौर पर महाराष्ट्र, उत्तरांचल, अरुणाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तर प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, उड़ीसा, कर्नाटक और गुजरात आदि राज्यों में हो रही है।

डेजी फूल की खेती (Daisy flower Farming)

यह एक बहुत ही लोकप्रिय फूल है, जिसका उपयोग घर की साज सज्जा में किया जाता है। इसके साथ ही इन फूलों का उपयोग गुलदस्ते बनाने में और विवाह में सजावट के दौरान भी बहुतायत में हो रहा है। इसलिए बाजार में इन फूलों की मांग बढ़ गई है, जिसके कारण भारत के किसान इस खेती की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। मांग के अनुसार डेजी फूल की खेती करके किसान भाई अच्छी खासी कमाई कर सकते हैं।

डेजी फूल के लिए इस प्रकार की जलवायु होती है उपयुक्त

डेजी फूल की खेती उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में की जाती है। इसकी खेती के लिए ठंड में धूप तथा गर्मियों में छायादार जगह की जरूरत होती है। अगर दिन का तापमान 20°C-25°C और रात का तापमान 12°C-15°C के बीच हो तो यह डेजी फूल की खेती के लिए उपयुक्त वातावरण हो सकता है। इसलिए इसकी खेती के लिए ग्रीन हाउस या पॉलीहाउस सबसे उपयुक्त विकल्प माना जाता है। उष्णकटिबंधीय जलवायु में डेजी फूल की खेती खुले मैदानों में भी की जा सकती है।

इस प्रकार से करें मिट्टी का चयन

डेजी फूल की खेती किसी भी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन लेटराइट मृदा इसके लिए सबसे अच्छी मानी जाती है। मिट्टी से जल के उचित निकास के लिए व्यवस्था होना बहुत जरूरी है। इसके साथ ही मिट्टी का पीएचमान 5.0 से 7.2 के बीच होना चाहिए। मिट्टी में जीवांश पदार्थों की उपयुक्त मात्रा मिलाने पर डेजी फूल  के पौधों की वृद्धि तेजी से होती है। ये भी पढ़े: बारह महीने उपलब्ध रहने वाले इस फूल की खेती से अच्छा मुनाफा कमा रहे किसान

ये हैं डेजी फूल की उन्नत किस्में

डेजी फूल की लगभग 70 अलग-अलग किस्में है जो विभिन्न रंगों के फूल देती हैं। इसलिए हम आपको फूलों के रंगों के आधार पर किस्मों को बताने जा रहे हैं।
  • सफ़ेद फूल की उन्नत किस्में : फरीदा, व्हाइट मारिया, विंटर क्वीन, डेल्फी और स्नोफ्लेक।
  • नारंगी रंग के फूल की किस्में : कोजक, ऑरेंज क्लासिक, कैरेरा, मारा सोल और गोलियथ।
  • जामुनी रंग के फूल की किस्में : ब्लैक जैक और ट्रीजर।
  • पीले रंग वाले फूल की किस्में  : तलासा, फ्रेडकिंग, नाडजा, पनामा, फूलमून, डोनी, सुपरनोवा, मेमूट और यूरेनस।
  • लाल रंग के फूल वाली किस्में : साल्वाडोर, रेड इम्पल्स, फ्रेडोरेल्ला, रुबीरेड, वेस्टा और तमारा।
  • गुलाबी रंग के फूल की किस्में :  रोसलिन, मारा, सल्वाडोर, पिंक एलिगेंस, रोसलिन, टेरा क्वीन और वेलेंटाइन।

ऐसे करें खेत की तैयारी

खेत में पलाऊ की सहायता से जुताई करके पुरानी फसल के बचे हुए अवशेषों और खरपतवारों को नष्ट करके मिट्टी में मिला दें। इसके बाद कम से कम 2 से 3 बार जुताई करके खेत की मिट्टी को भुरभुरी बना लें। खेत की जुताई करते समय गोबर की खाद मिलाएं। इससे खेत की उर्वराशक्ति बढ़ाने में मदद मिलेगी। मिट्टी भुरभुरी होने के उपरांत अंत में खेत में पाटा चलाकर खेत की मिट्टी को पूरी तरह से समतल कर दें।

डेजी फूल की खेती के लिए इस प्रकार से तैयार करें बेड

डेजी फूल की खेती के लिए ऐसे बेड तैयार करने चाहिए जिनमें पानी निकास की उचित व्यवस्था हो। ताकि पानी जल्द से जल्द खेत से बाहर भेजा जा सके। फूलों के पौधों की रोपाई के लिए 1.5 फीट ऊंचे और 2 से 3 फीट चौड़े बेड बनाने चाहिए। इसके साथ ही कतार से कतार की दूरी 1 फीट होना चाहिए। अगर किसान बेड बनाते समय नीम की खली का प्रयोग करते हैं तो पौधों में नेमाटोड जैसा रोग नहीं लगेगा।

इस समय पर करें डेजी फूल की बुवाई

डेजी फूल की बुवाई साल में तीन बार की जा सकती है। साल की शुरुआत में जनवरी से मार्च के बीच इसकी बुवाई की जा सकती है, इसके बाद जून से जुलाई और नवंबर से दिसंबर के बीच इसकी बुवाई की जा सकती है।

डेजी फूल की रोपाई

जब इस फूल के पौधों की रोपाई करें तो यह ध्यान रखें कि पौधे का क्राउन मिट्टी से 2-3 सेमी ऊपर होना चाहिए। इसके साथ ही कतार से कतार की दूरी 35-40 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 25-30 सेमी होना चाहिए। एक बेड पर दो कतारों में डेजी फूल के पौधों को लगाया जा सकता है।

इस प्रकार से करें खाद एवं उर्वरक का प्रयोग

डेजी फूल की खेती करते समय खेत तैयार होने के पहले 20 टन प्रति एकड़ के हिसाब से गोबर की सड़ी हुई खाद डालें। इसके साथ ही वर्मी कंपोस्ट का भी प्रयोग किया जा सकता है। साथ ही प्रति एकड़ के हिसाब से 40 किलो फास्फोरस और 40 किलो पोटाश का प्रयोग करें। मिट्टी में आयरन की कमी होने की स्थिति में 10 ग्राम प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से फेरस सल्फेट का का भी प्रयोग किया जा सकता है। ये भी पढ़े: ऐसे करें रजनीगंधा और आर्किड फूलों की खेती, बदल जाएगी किसानों की किस्मत उर्वरक का प्रयोग फसल के अच्छे उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ऐसे में खेतों में उर्वरक का उचित प्रबंध किया जाना आवश्यक है। शुरूआती दिनों में पानी में घोलकर एनपीके खाद का भी प्रयोग किया जा सकता है। जब पौधे में फूल आना शुरू हो जाएं तब कैल्शियम, बोरॉन, मैग्नेशियम और कॉपर जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों का छिड़काव करना चाहिए। इससे फूलों का उचित विकास होता है। यह छिड़काव तीन से चार सप्ताह के बाद 2 से 3 बार करना चाहिए।

सिंचाई और खरपतवार नियंत्रण

डेजी फूल की खेती में रोपाई के तुरंत बाद सिंचाई करना चाहिए। इसके बाद एक महीने तक लगातार सिंचाई करते रहें। डेजी फूल के पौधों को अन्य पौधों की अपेक्षा ज्यादा पानी की जरूरत होती है। ये पौधे प्रतिदिन औसतन 700 मिलीलीटर पानी लेते हैं। खरपतवार नियंत्रण के लिए फसल की समय समय पर आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। इससे खरपतवार खेत में बढ़ने नहीं पाएगा और नष्ट हो जाएगा।

डेजी फूल की खेती में रोग और कीटों का प्रयोग

इस फसल में कली सड़न, ख़स्ता फफूंदी आदि रोगों का प्रकोप होता है। इसके साथ ही डेजी फूल की खेती में चेपा, थ्रिप्स, सफ़ेद मक्खी, रेड स्पाइडर माइट और नेमाटोड जैसे कीट भी आक्रमण कर देते हैं। इनसे निपटने के लिए कृषि विशेषज्ञों की सलाह लें और उचित दवाइयों का प्रयोग करें।

डेजी फूल की तुड़ाई

इसके पौधों में रोपाई के 12 सप्ताह बाद ही फूल आने लगते हैं, लेकिन शुरुआत में अच्छी गुणवत्ता न होने के कारण फूलों कि तुड़ाई 14 सप्ताह बाद शुरू की जाती है। डेजी फूल को डंठल के साथ तोड़ा जाता है जिसकी लंबाई 55 सेंटीमीटर के आस पास होती है। डेजी के फूलों को बहुत सावधानी से तोड़ना चाहिए नहीं तो फूल खराब हो जाएंगे। तोड़ने के बाद इन्हें साफ पानी से भारी हुई बाल्टी में रखा जाता है ताकि फूलों की गुणवत्ता बरकरार रहे। एक साल में डेजी का एक पौधा औसतन 45 फूल तक दे सकता है। ये भी पढ़े: गुलाब में लगने वाले ये हैं प्रमुख कीड़े एवं उनसे बचाव के उपाय

डेजी फूलों की मांग एवं विपणन

अगर उत्पादन की बात करें तो डेजी फूलों का उत्पादन ज्यादातर पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, कर्नाटक, गुजरात, उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल और अरुणाचल प्रदेश में किया जाता है। लेकिन इसकी मांग दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद, हैदराबाद, बंगलौर, कोलकाता जैसे बाजारों में ज्यादा है। इसका प्रयोग ज्यादातर शादियों में साज सज्जा में किया जाता है। इसलिए इसकी बिक्री पर किसानों को अच्छी खासी कमाई होती हैं। डेजी फूल की खेती करके किसान कम समय में ज्यादा से ज्यादा कमाई कर सकते हैं।
महिला किसान गेंदे की खेती से कर रही अच्छी-खासी आमदनी

महिला किसान गेंदे की खेती से कर रही अच्छी-खासी आमदनी

आजकल बदलते दौर में किसान अपना रुख परंपरागत खेती से हटकर अधिक मुनाफा देने वाली फसलों की खेती करने लगे हैं। इसी कड़ी में झारखंड राज्य के पलामू जनपद की रहने वाली एक महिला किसान गेंदे के फूल की खेती से अमीर हो गई है। फिलहाल, आसपास की महिलाएं और पुरूष भी उससे गेंदे की खेती करने के गुर सीख रहे हैं।

गेंदे के फूल का इस्तेमाल बहुत सारी जगहों पर किया जाता है

हालाँकि, भारत में सभी प्रकार के फूल उत्पादित किए जाते हैं। परंतु,
गेंदा की खेती सर्वाधिक की जाती है। क्योंकि इसका इस्तेमाल भी सर्वाधिक होता है। बतादें कि इसका उपयोग मंच और घर को सजाने से लेकर पूजा- पाठ में सबसे ज्यादा किया जाता है। सिर्फ इतना ही नहीं नेताओं के स्वागत में सबसे अधिक गेंदे की माला ही गले में ड़ाली जाती है। साथ ही, मंदिर और घर के तोरण द्वार भी गेंदे से ही निर्मित किए जाते हैं। ऐसे में किसान गेंदे की खेती कर बेहतर आय कर सकते हैं। आज हम आपको एक ऐसी ही महिला किसान की कहानी बताने जा रहे हैं, जिसकी किस्मत गेंदे के फूल की खेती से बिल्कुल बदल गई। न्यूज 18 हिन्दी की रिपोर्ट के अनुसार, झारखंड के पलामू जनपद की रहने वाली एक महिला गेंदे के फूल की खेती कर के मालामाल हो गई है।

आसपास की महिलाऐं और पुरुष मुन्नी से गेंदे की खेती सीखने आते हैं

अब समीपवर्ती महिलाएं और पुरूष भी उससे गेंदे की खेती करने का तौर तरीका सीखने आ रहे हैं। विशेष बात यह है, कि उसने अपने मायके में गेंदे की खेती करने की तकनीक सीखी थी। शादी होने के बाद जब वह अपने ससुराल आई तो स्वयं ही उसने गेंदे के फूल की खेती करनी चालू कर दी। महिला का नाम मुन्नी देवी है। वह पांडू प्रखंड के तिसीबार गांव की रहने वाली है। हाल में वह लगभग 10 एकड़ की भूमि पर गेंदे की खेती कर रही है। ये भी पढ़े: इस फूल की खेती कर किसान हो सकते हैं करोड़पति, इस रोग से लड़ने में भी सहायक

गेंदे के फूल की एक माला की कितनी कीमत है

मुन्नी देवी का कहना है, कि ससुराल आने के उपरांत उन्होंने वर्ष 2019 में गेंदे की खेती आरंभ की थी। प्रथम वर्ष ही उनको काफी अच्छा फायदा हुआ था। इसके उपरांत वह खेती के रकबे में इजाफा करती गईं, जिससे उनका मुनाफा भी बढ़ता गया। मुख्य बात यह है, कि मुन्नी देवी खेती करने के लिए प्रतिवर्ष कलकत्ता से गेंदे के पौधों को मंगवाती हैं। उसके बाद पौधों को लगाकर उनमें वक्त पर उर्वरक और सिंचाई करती हैं। तीन माह में पौधों में गेंदे के फूल आने शुरू हो जाते हैं। इसके उपरांत वह माला बनाकर बेच देती हैं। केवल एक माला 15 रुपये में बेची जाती है, जिसके अंतर्गत गेंदे के 40 फूल गुथे रहते हैं।

मुन्नी वर्षभर में लाखों रुपये की आमदनी कर रही है

सालाना आमदनी को लेकर मुन्नी देवी ने कहा है, कि वर्ष में वह दो बार गेंदे की खेती करती हैं। जनवरी के माह में लगाए गए पौधों में तीन माह के अंतर्गत फूल आ जाते हैं। क्योंकि, अप्रैल से लेकर जून तक शादियों का सीजन चलता है। ऐसे में गेंदे की बिक्री बड़ी ही सुगमता से हो जाती है। उसके बाद अगस्त और सितंबर माह में गेंदे के पौधों का रोपण किया जाता है। सर्दियों के मौसम में यह फूलों से लद जाते हैं। इसके चलते पौधों में बड़े- बड़े आकार के सुगंधित गेंदे के फूल आते हैं। फिलहाल, मुन्नी देवी गेंदे की खेती से वर्षभर में लाखों रुपये की आमदनी कर रही हैं।